परमहंस तिगडाने वाले बाबा की जीवनी

भारतवर्ष की परमपुण्यमयी धरती पर देवताओं ने विभिन्न युगों में समय-समय पर अवतार लिया। सुर नर मुनि गंधर्व अत्यादि भारत भुमि पर निरन्तर जन्म ले कर अपनी लीला कर्म जप तप ईत्यादि से इसकी महिमा एव श्रीव्रद्धि करते है। इसी भारत भुमि के आजादी से पुर्व पंजाब प्रान्त के हिसार जिला के भिवानी ताल्लुका के निकटवर्ती गांव तिगड़ाना मे सन 1892 विक्रमी संवत1949 में एक बाबा ने आकर डेरा डाला। वर्तमान हरियाणा के भिवनी जिला मुख्यालय से लगभग भगकर किलोमीटर दुर तिगड़ाना गांव में आकर डेरा डालने वाले साधू का नाम दूर-दुर तक प्रसिद्ध हुआ। और उनके चम्त्कारो से प्रभावित लोग उन्हे परमहंस बाबा लटाधारी के नाम से जानने लगे। इनको लोग छोंरा वाला तिगड़ानिया बाबा के नाम से भी जानते है।

ô त्याग तप्स्या एवं ब्रहम्चार्य की साक्षात प्रतिमुर्ति नागा लटाधारी हिमालय में घोर तप्स्या करके लम्बी समाधि के बाद चेतन्य अव्स्था मे तप्स्या घूमते-घूमते तिगड़ाना गांव पधारे और यही रहने लगे।

ô परमयोगी लटाधारी बाबा के जन्मस्थान और आयु माता-पिता कुलवंश के बारे मे कही कोई व्रतात नही मिलता के वल इतनी जानकारी मिलती है। कि उनका राज्स्थान में जन्म हुआ था। और उन्होने बारह वर्ष की अल्पायु में सन्यास ले लिया था। इसके उपरान्त उन्होने हिमालय में योग्वस्था में घोर तप्स्या करके औधड़धानी शंकर जी को प्रसन्न कर लिया। जिससे उन्हे लोक कल्यान प्रप्त हुआ।

ô प्राप्त जान्कारी के अनुसार वे अधोरी सरभंगी संत थे। तिगड़ाने में उन्हे लाकर बसाने में ब्रह्मनन्द तथा फुल सिहँ भानजा सावंड़िया की भुमिका बतायी जाती है।यंहा आकर जो ह्ड़ के पास एक बाड़े में डेरा बना कर रह्ते हुऍ उन्होने अन्धे लक्ष्मण कुम्हार को अपने योग बल से नेत्र ज्योति प्रदान कि और किसानो के लिए पानी बरसाया और नाग को वश में किया। ईस्वी सन 1896 विक्र्मी सवंत1953 में जब यहाँ अकाल पड़ा तब इस इलाके में लगातार प्रन्द्र्ह दिन तक बरसात करवा कर उन्होने यहाँ के लोगो को राहत प्रदान की सन 1902 सवंत 1960 में इस इलाके में प्लेग फेला तो बाबा के मेहर से यह बीमारी इस गांव में प्रवेश के साथ ही बाबा के आदेश से गांव छोड़ गयी।सन1904 में बाबा अपने भक्त मुला पटवारी की दोमं जिला हवेली मे गये वही मूला का पूत्र रूड़ चन्द ने बाबा की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न होकर उन्होने उसको वंश व्रदि एवं सम्पन्न्ता का वर्दान दिया। जो फलिभुत हुआ और रुड़ चन्द के तीन पुत्र रामलाल,रामचंद्र व मनीराम हुए तथा अपरिमित सम्पन्नता प्राप्त हुई।

ô परमहंस लटाधारी के पुण्य प्रताप का फ़ल पाने की इच्छा से भिवानी के एक सेठ सेठानी जिनके बच्चे होकर भी नही बचते थे। बाबा के श्रीचरणो में पटवारी के हवेली के ऊपर चौबारे में जा लेटे तब बाबा ने सेठानी को को उपर से धक्का दिया जिससे सेठानी के गर्भ से शिशु हुआ और वह पूरी उम्र जीयेगा यह वरदान सेठ सेठानी को बाबा ने दिया। सेठानी को चौबारे से नीचे गिरने पर भी खंरोच तक नही आयी। यह भारी चमत्कार सभी ने देखा। इसी प्रकार भीषण अकाल ग्रस्त पाट्ण राज्य के महाराज ने अपने दरबारियों सहित आकर बाबा से अरदास की तो बाबा ने उन्हे आशिर्वाद देकर विदा किया पाट्ण महाराज ने भण्डारा किया तो पाट्ण राज्य में अच्छी वर्षा हुई जिससे वहाँ हरियाली छा गयी और खूब फसलें हुई जिससे पाट्ण राज्य के निवासी सुखी और सम्पन्न हो गये।

ô इसी प्रकार राज्स्थान से गौए लेकर चराते हुए तिगड़ाना पहुँचे बंजारा परिवार में से एक बच्चे को सर्प ने काट लिया जिसे लेकर वह बाबा की शरण में आया तो बाबा की दविक शक्ति ने उसे जिन्दा कर दिया।बाबा ने भोजावास के पुत्रहीन भेरुसिहँ की अरदास पूरी कर उसे व्रधावस्था की और बढ़ती उम्र में एक पुत्र का वरदान दिया भेरुसिहँ भोजावास छोड्कर तिगड़ाना आकर बस गया उसके पुत्र सोवरण सिहँ हुआ जो बाद में पुलिस में भर्ती होकर अपना सेवाकाल पूरा करके सेवानिवर्त हुआ और बाबा के प्रसाद चढाने आया।बाबा ने सन 1914 में अंग्रेज गवर्नर के द्वारा तिगड़ाना से तुर्की के विरुद्ध अंग्रेजी राज्य की तरफ़ से लड़ने के लिए सिपाहियो की भर्ती के दौरान उस गवर्नर द्वारा बाबा की शरण में जाने पर जीत का वरदान दिया गया। परिणामस्वरूप अंग्रेजो की जीत हुई तुर्की की केद से पकडे गये सभी सेनिक जिन्दा वापिस छुट गये। इनमे मुखाराम की कहानी विशेष चर्चित है। बाबा ने पास रहने वाले कुत्ते के अचानक मर जाने पर उसे जिन्दा किया तथा इसी प्रकार अलवर के रहने वाले अध्यापक पंडित मांगेराम के द्वारा सपत्निक अपने इकलोते अन्धे पुत्र को लेकर बाबा की शरण में आया बाबा ने उसे नेत्र ज्योति प्रदान की बाबा लटाधारी के सीसर से लाला धन्ना राम जी के साथ दर्शनो के लिए नियमित रुप से पेदल चलकर तिगड़ाने जाने वाले लाला रामप्रसाद जी को बाबा ने आशीर्वाद स्वरूप तीन बार क्रपा क्रपा कहा जिससे इनका कुल वशं सुख सम्र के शिखर की ओर अग्रसर है।

ô बाबा लटाधारी ने विक्रमी सवंत 1975 को सुबह प्रातः 4 बज के 11 मिनट पर सावन बदी पंचमी के दिन सन 1918 कं जुलाई माह में शिव धाम के लिए प्रस्थान करने के लिए अपना चौला त्याग दिया।उनको समस्त तिगड़ाना वासियो ने विधिपूर्वक पातन जो ह्ड़ पर अग्नि समाधि दी। आज भी सावन बदी पंचमी के दिन बाबा के स्थान पर हर वर्ष विशाल मेला और भण्डारा लगता है।यहाँ पातन जो ह्ड़ पर जुगल किशोर बिड्ला तथा मूल सिहँ पट्वारी के वशंजो ने मंदिर बनवाया है।

ॐ जनश्रुति पर आधारित से वक्ता राधे श्याम तवंर ॐ